Saturday, November 21, 2009
Tuesday, February 24, 2009
अनुबंध
मन करता है फ़िर कोई अनुबंध लिखूं ,
गीत गीत हो जाऊँ ऐसा छंद लिखूं ,
सरसों की राग्रून चितवन दृष्टि कर गई सिंदूरी,
योगी को वियोगी कह कर हो गयी बेला अंगूरी,
लिखना ही है तो भुजबंध लिखूं ।
सुख से पंगु अतीत विसर्जित कर दूँ जमुना के जल में ,
आगत से ऐसा भावी सम्बन्ध लिखूं ,
हस्ताक्षर में निर्विकल्प आनंद लिखूं.
गीत गीत हो जाऊँ ऐसा छंद लिखूं ,
सरसों की राग्रून चितवन दृष्टि कर गई सिंदूरी,
योगी को वियोगी कह कर हो गयी बेला अंगूरी,
लिखना ही है तो भुजबंध लिखूं ।
सुख से पंगु अतीत विसर्जित कर दूँ जमुना के जल में ,
आगत से ऐसा भावी सम्बन्ध लिखूं ,
हस्ताक्षर में निर्विकल्प आनंद लिखूं.
Sunday, February 22, 2009
एक और कविता
पूछ रहे मन्दिर गुरूद्वारे आग लगाता कौन यहाँ ?
चंदन वन में विष की बेले आज उगाता कौन यहाँ ?
प्यार बाँटती थी जो धरती बिखरे हैं उस पर कांटे ,
जिनको जोड़ा सदा धर्म ने किसने वो भाई बांटे ?
नाम धर्म का लेकर गोली कहो चलाता कौन यहाँ ?
चंदन वन में विष की बेले आज उगाता कौन यहाँ ?
गुरुद्वारों में गुमसुम हैं गुरु सहमे हैं मन्दिर के राम ,
शैतानों के घर दिवाली मानवता के घर कोहराम,
खूनी हाथों हाय मृत्यु का पर्व मनाता कौन यहाँ?
चंदन वन में विष की बेलें आज उगाता कौन यहाँ ?
चंदन वन में विष की बेले आज उगाता कौन यहाँ ?
प्यार बाँटती थी जो धरती बिखरे हैं उस पर कांटे ,
जिनको जोड़ा सदा धर्म ने किसने वो भाई बांटे ?
नाम धर्म का लेकर गोली कहो चलाता कौन यहाँ ?
चंदन वन में विष की बेले आज उगाता कौन यहाँ ?
गुरुद्वारों में गुमसुम हैं गुरु सहमे हैं मन्दिर के राम ,
शैतानों के घर दिवाली मानवता के घर कोहराम,
खूनी हाथों हाय मृत्यु का पर्व मनाता कौन यहाँ?
चंदन वन में विष की बेलें आज उगाता कौन यहाँ ?
Meri Kavita
ये आनंद की प्रेम सभा है यहाँ संभल कर आना जी ,
जो भी आया यहाँ किसी का होकर गया दीवाना जी ।
जो भी आया यहाँ किसी का होकर गया दीवाना जी ।
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